Luke 1 in Urdu
1 चूँकि बहुतों ने इस पर कमर बाँधी है कि जो बातें हमारे दरमियान वाक़े ' हुईं उनको सिलसिलावार बयान करें.
2 जैसा कि उन्होंने जो शुरू ' से ख़ुद देखने वाले और कलाम के ख़ादिम थे उनको हम तक पहुँचाया।
3 इसलिए ऐ मु 'अज़िज्ज़ थियुफिलूस ! मैंने भी मुनासिब जाना कि सब बातों का सिलसिला शुरू ' से ठीक-ठीक मालूम करके उनको तेरे लिए तरतीब से लिखूँ ।
4 ताकि जिन बातों की तूने तालीम पाई है उनकी पुख्तगी तुझे मालूम हो जाए।
5 यहूदिया के बादशाह हेरोदेस के ज़माने में अबिब्याह के फरीक में से ज़करियाह नाम एक काहिन था और उसकी बीवी हारून की औलाद में से थी और उसका नाम इलीशिबा 'था ।
6 और वो दोनों ख़ुदा के सामने रास्तबाज़ और खुदावन्द के सब अहकाम-ओ-कवानीन पर बे- 'ऐब चलने वाले थे.
7 और उनके औलाद न थी क्यूँकि इलीशिबा ' बाँझ थी और दोनों 'उम्र रसीदा थे।
8 जब वो ख़ुदा के हुज़ूर अपने फरीक की बारी पर इमामत का काम अन्जाम देता था तो ऐसा हुआ , ।
9 कि इमामत के दस्तूर के मुवाफिक उसके नाम की पर्ची निकली कि खुदावन्द के मक़दिस में जाकर खुश्बू जलाए ।
10 और लोगों की सारी जमा 'अत खुश्बू जलाते वक़्त बाहर दुआ कर रही थी ।
11 अचानक खुदा का एक फ़रिश्ता ज़ाहिर हुआ जो खुश्बू जलाने की क़ुर्बानगाह के दहनी तरफ़ खड़ा हुआ उसको दिखाई दिया ।
12 उसे देख कर ज़करियाह घबराया और बहुत डर गया।
13 लेकिन फ़रिश्ते ने उस से कहा, “ज़करियाह, मत डर! खुदा ने तेरी दुआ सुन ली है। तेरी बीवी इलीशिबा के बेटा होगा। उस का नाम युहन्ना रखना।
14 वह न सिर्फ़ तेरे लिए ख़ुशी और मुसर्रत का बाइस होगा, बल्कि बहुत से लोग उस की पैदाइश पर ख़ुशी मनाएँगे।
15 क्यूँकि वह खुदा के नज़्दीक अज़ीम होगा। ज़रूरी है कि वह मय और शराब से परहेज़ करे। वह पैदा होने से पहले ही रूह-उल-क़ुद्दूस से भरपूर होगा|
16 और इस्राईली क़ौम में से बहुतों को खुदा उन के ख़ुदा के पास वापस लाएगा।
17 वह एलियाह की रूह और क़ुव्वत से ख़ुदावन्द के आगे आगे चलेगा। उस की ख़िदमत से वालिदों के दिल अपने बच्चों की तरफ़ माइल हो जाएँगे और नाफ़रमान लोग रास्तबाज़ों की अक्लमंदी की तरफ़ फिरेंगे | यूँ वह इस क़ौम को खुदा के लिए तय्यार करेगा।
18 ज़करियाह ने फ़रिश्ते से पूछा, “मैं किस तरह जानूँ कि यह बात सच् है? मैं ख़ुद बूढ़ा हूँ और मेरी बीवी भी उम्र रसीदा है।”
19 फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “मैं जिब्राईल हूँ जो खुदावंद के सामने खड़ा रहता हूँ। मुझे इसी मक़्सद के लिए भेजा गया है कि तुझे यह ख़ुशख़बरी सुनाऊँ।
20 लेकिन तूने मेरी बात का यक़ीन नहीं किया इस लिए तू ख़ामोश रहेगा और उस वक़्त तक बोल नहीं सकेगा जब तक तेरे बेटा पैदा न हो। मेरी यह बातें अपने वक़्त पर ही पूरी होंगी।”
21 इस दौरान बाहर के लोग ज़करियाह के इन्तिज़ार में थे। वह हैरान होते जा रहे थे कि उसे वापस आने में क्यूँ इतनी देर हो रही है।
22 आख़िरकार वह बाहर आया, लेकिन वह उन से बात न कर सका। तब उन्हों ने जान लिया कि उस ने बैत-उल-मुक़द्दस में ख्वाब देखा है। उस ने हाथों से इशारे तो किए, लेकिन ख़ामोश रहा।
23 ज़करियाह अपने वक़्त तक बैत-उल-मुक़द्दस में अपनी ख़िदमत अन्जाम देता रहा, फिर अपने घर वापस चला गया।
24 थोड़े दिनों के बाद उस की बीवी इलीशिबा हामिला हो गई और वह पाँच माह तक घर में छुपी रही।
25 उस ने कहा, “ख़ुदावन्द ने मेरे लिए कितना बड़ा काम किया है, क्यूँकि अब उस ने मेरी फ़िक्र की और लोगों के सामने से मेरी रुस्वाई दूर कर दी।”
26 इलीशिबा छः माह से हमिला थी जब खुदा ने जिब्राईल फ़रिश्ते को एक कुंवारी के पास भेजा जो नासरत में रहती थी। नासरत गलील का एक शहर है और कुंवारी का नाम मरियम था।
27 उस की मंगनी एक मर्द के साथ हो चुकी थी जो दाऊद बादशाह की नसल से था और जिस का नाम यूसुफ़ था।
28 फ़रिश्ते ने उस के पास आ कर कहा, “ऐ ख़ातून जिस पर खुदा का ख़ास फ़ज़्ल हुआ है, सलाम! खुदा तेरे साथ है।”
29 मरियम यह सुन कर घबरा गई और सोचा, “यह किस तरह का सलाम है?”
30 लेकिन फ़रिश्ते ने अपनी बात जारी रखी और कहा, “ऐ मरियम, मत डर, क्यूँकि तुझ पर खुदा का फ़ज़्ल हुआ है।
31 तू हमिला हो कर एक बेटे को पैदा करेगी । तू उस का नाम ईसा (नजात देने वाला) रखना।
32 वह बड़ा होगा और खुदा वंद का बेटा कहलाएगा। खुदा हमारा ख़ुदा उसे उस के बाप दाऊद के तख़्त पर बिठाएगा
33 और वह हमेशा तक इस्राईल पर हुकूमत करेगा। उस की सल्तनत कभी ख़त्म न होगी।”
34 मरियम ने फ़रिश्ते से कहा, “यह क्यूँकर हो सकता है? अभी तो मैं कुंवारी हूँ।”
35 फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “रूह-उल-क़ुद्दूस तुझ पर नाज़िल होगा, खुदावंद की कुदरत का साया तुझ पर छा जाएगा। इस लिए यह बच्चा क़ुद्दूस होगा और खुदा का बेटा कहलाएगा।
36 और देख, तेरी रिश्तेदार इलीशिबा के भी बेटा होगा हालाँकि वह उम्ररसीदा है। गरचे उसे बाँझ क़रार दिया गया था, लेकिन वह छः माह से हमिला है।
37 क्यूँकि खुदा के नज़्दीक कोई काम नामुम्किन नहीं है।”
38 मरियम ने जवाब दिया, “मैं खुदा की ख़िदमत के लिए हाज़िर हूँ। मेरे साथ वैसा ही हो जैसा आप ने कहा है।” इस पर फ़रिश्ता चला गया।
39 उन दिनों में मरियम यहूदिया के पहाड़ी इलाक़े के एक शहर के लिए रवाना हुई। उस ने जल्दी जल्दी सफ़र किया।
40 वहाँ पहुँच कर वह ज़करियाह के घर में दाख़िल हुई और इलीशिबा को सलाम किया।
41 मरियम का यह सलाम सुन कर इलीशिबा का बच्चा उस के पेट में उछल पड़ा और इलीशिबा ख़ुद रूह-उल-क़ुद्दूस से भर गई।
42 उस ने बुलन्द आवाज़ से कहा, “तू तमाम औरतों में मुबारक है और मुबारक है तेरा बच्चा!
43 मैं कौन हूँ कि मेरे ख़ुदावन्द की माँ मेरे पास आई!
44 जैसे ही मैं ने तेरा सलाम सुना बच्चा मेरे पेट में ख़ुशी से उछल पड़ा।
45 तू कितनी मुबारक है, क्यूँकि तू ईमान लाई कि जो कुछ खुदा ने फ़रमाया है वह पूरा होगा ।”
46 इस पर मरियम ने कहा, “मेरी जान खुदा की बड़ाई करती है
47 और मेरी रूह मेरे मुन्जी खुदावंद से बहुत ख़ुश है।
48 क्यूँकि उस ने अपनी ख़ादिमा की पस्ती पर नज़र की है। हाँ, अब से तमाम नसलें मुझे मुबारक कहेंगी,
49 क्यूँकि उस क़ादिर ने मेरे लिए बड़े-बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पाक है |
50 और खौफ रहम उन पर जो उससे डरते हैं, पुश्त-दर-पुश्त रहता है |
51 उसने अपने बाज़ू से ज़ोर दिखाया, और जो अपने आपको बड़ा समझते थे उनको तितर बितर किया |
52 उसने इख्तियार वालों को तख्त से गिरा दिया, और पस्तहालों को बुलंद किया |
53 उसने भूखों को अच्छी चीज़ों से सेर कर दिया, और दौलतमंदों को ख़ाली हाथ लौटा दिया |
54 उसने अपने ख़ादिम इस्राईल को संभाल लिया, ताकि अपनी उस रहमत को याद फरमाए |
55 “ जो अब्राहम और उसकी नस्ल पर हमेशा तक रहेगी, जैसा उसने हमारे बाप-दादा से कहा था |""”
56 और मरियम तीन महीने के करीब उसके साथ रहकर अपने घर को लौट गई |
57 और इलीशिबा' के वज़'ए हम्ल का वक़्त आ पहुँचा और उसके बेटा हुआ |
58 उसके पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने ये सुनकर कि खुदावन्द ने उस पर बड़ी रहमत की, उसके साथ ख़ुशी मनाई |
59 और आठवें दिन ऐसा हुआ कि वो लड़के का ख़तना करने आए और उसका नाम उसके बाप के नाम पर ज़करियाह रखने लगे |
60 “ मगर उसकी माँ ने कहा, ““नहीं बल्कि उसका नाम युहन्ना रखा जाए |""”
61 “ उन्होंने कहा, ““तेरे खानदान में किसी का ये नाम नहीं |""”
62 और उन्होंने उसके बाप को इशारा किया कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है?
63 “ उसने तख्ती माँग कर ये लिखा, ““उसका नाम युहन्ना है,”” और सब ने ता'ज्जुब किया |”
64 उसी दम उसका मुँह और ज़बान खुल गई और वो बोलने और खुदा की हम्द करने लगा |
65 और उनके आसपास के सब रहने वालों पर दहशत छा गई और यहूदिया के तमाम पहाड़ी मुल्क में इन सब बातों की चर्चा फ़ैल गई |
66 “ और उनके सब सुनने वालों ने उनको सोच कर दिलों में कहा, ““तो ये लड़का कैसा होने वाला है?”” क्यूँकि खुदावन्द का हाथ उस पर था |”
67 और उस का बाप ज़किरयाह रुह-उल-कुद्दूस से भर गया और नबुव्वत की राह से कहने लगा कि :
68 खुदावन्द इस्राईल के खुदा की हम्द हो क्यूँकि उसने अपनी उम्मत पर तवज्जो करके उसे छुटकारा दिया |
69 और अपने खादिम दाऊद के घराने में हमारे लिए नजात का सींग निकाला,
70 (जैसा उसने अपने पाक नबियों की ज़बानी कहा था जो कि दुनिया के शुरू' से होते आए है)
71 या'नी हम को हमारे बाप-दादा दुश्मनों से और सब गुब्ज़ रखने वालों के हाथ से नजात बख्शी |
72 ताकि हमारे बाप-दादा रहम करे और अपने पाक 'अहद को याद फ़रमाए |
73 या'नी उस कसम को जो उसने हमारे बाप अब्राहम से खाई थी,
74 कि वो हमें ये 'करम करेगा कि अपने दुश्मनों के हाथ से छूटकर,
75 उसके सामने पाकीज़गी और रास्तबाज़ी से 'उम्र भर बेख़ौफ़ उसकी 'इबादत करें
76 और ऐ लड़के तू खुदा ता'ला का नबी कहलाएगा क्यूँकि तू खुदावन्द की राहें तैयार करने को उसके आगे आगे चलेगा,
77 ताकि उसकी उम्मत को नजात का 'इल्म बख्शे जो उनको गुनाहों की मु'आफ़ी से हासिल हो |
78 ये हमारे खुदा की 'ऐन रहमत से होगा; जिसकी वज़ह से 'आलम-ए-बाला का सूरज हम पर निकलेगा,
79 “ ताकि उनको जो अन्धेरे और मौत के साये में बैठे हैं रोशनी बख्शे, और हमारे कदमों को सलामती की राह पर डाले |""”
80 और वो लड़का बढ़ता और रूह में कूव्वत पाता गया, और इस्राईल पर ज़ाहिर होने के दिन तक जंगलों में रहा |