John 2 in Urdu
1 फिर तीसरे दिन काना-ए-गलील में एक शादी हुई औरईसा'की माँ वहाँ थी|
2 ईसा'और उसके शागिर्दों की भी उस शादी मे दा'वत थी।
3 “और जब मय खत्म हो चुकी,तोईसा'की माँ ने उससे कहा, ““उनके पास मय नहीं रही|"””
4 “ईसा'ने उससे कहा, ““ऐ'औरत मुझे तुझ से क्या काम है?अभी मेरावक़्तनहीं आया है|"””
5 “उसकी माँ ने खादिमों से कहा, ““जो कुछ ये तुम से कहे वो करो।””
6 वहाँ यहूदियों की पाकी के दस्तूर के मुवाफ़िक़ पत्थर के छे:मटके रख्खे थे,और उनमें दो-दो,तीन-तीन मन की गुंजाइश थी।
7 “ईसा'ने उससे कहा, ““मटकों में पानी भर दो|“”पस उन्होंने उनको पूरा भर दिया।”
8 “फिर उसने उन से कहा, ““अब निकाल कर मजलिस के पास ले जाओ|“”पस वो ले गए।”
9 जब मजलिस के सरदार ने वो पानी चखा,जो मय बन गया था और जानता न था कि ये कहाँ से आई है (मगर खादिम जिन्होंने पानी भरा था जानते थे), तो मजलिस के सरदार ने दूल्हा को बुलाकर उससे कहा,
10 ““"हर शख्स पहले अच्छी मय पेश करता है और नाकिस उसवक़्तजब पीकर छक गए,मगर तूने अच्छी मय अब तक रख छोड़ी है|"””
11 ये पहला मो'जिज़ाईसा'ने काना-ए-गलील में दिखाकर,अपना जलाल ज़ाहिर किया और उसके शागिर्द उस पर ईमान लाए|
12 इसके बा'द वो और उसकी माँ और भाई और उसके शागिर्द कफरनहूम को गए और वहाँ चन्द रोज़ रहे|
13 यहूदियों की'ईद-ए-फसह नज़दीक थी,और ईसा'यरूशलीम को गया|
14 उसने हैकल में बैल और भेड़ और कबूतर बेचनेवालों को,और सार्रफों को बैठे पाया;
15 फिर ईसा”ने रस्सियों का कोड़ा बना कर सब को बैत-उल-मुक़द्दस से निकाल दिया,उसने भेड़ों और गाय-बैलों को बाहर निकालकरहाँक दिया,पैसे बदलने वालों के सिक्के बिखेर दिए और उनकी मेंजें उलट दीं|
16 “और कबूतर फ़रोशों से कहा, ““इनको यहाँ से ले जाओ!मेरे बाप के घर को तिजारत का घर न बनाओ|"””
17 “उसके शागिर्दों को याद आया कि लिखा है, ““तेरे घर की गैरत मुझे खा जाएगी|"””
18 “पस यहूदियों ने जवाब में उससे कहा, ““तू जो इन कामों को करता है,हमें कौन सा निशान दिखाता है?"””
19 “ईसा'ने जवाब में उससे कहा, ““इस मकदिस को ढा दो,तो मैं इसे तीन दिन में खड़ा कर दूँगा|"””
20 “यहूदियों ने कहा, ““छियालीस बरस में ये मकदिस बना है,और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा?"””
21 “मगर उसने अपने बदन के मकदिस के बारे में कहा था"”।”
22 ““"पस जब वो मुर्दों में से जी उठा तो उसके शागिर्दों को याद आया कि उसने ये कहा था;और उन्होंने किताब-ए-मुक्द्दस और उस कौल का जो ईसा'ने कहा था,यकीन किया”” |”
23 जब वो यरूशलीम में फसह केवक़्त'ईद में था,तो बहुत से लोग उन मो'जिज़ों को देखकर जो वो दिखाता था उसके नाम पर ईमान लाए|
24 लेकिन ईसा'अपनी निस्बत उस पर'ऐतबार न करता था,इसलिए कि वो सबको जानता था|
25 और इसकीजरूरतन रखता था कि कोई इन्सान के हक़ में गवाही दे,क्यूँकिवो आप जानता था कि इन्सान के दिल में क्या क्या है।