1 John 2 in Urdu

1 ऐ मेरे बच्चों! ये बातें मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ तुम गुनाह न करो ;और अगर कोई गुनाह करे ,तो बाप के पास हमारा एक मददगार मौजूद है ,या'नी ईसा' मसीह रास्तबाज़ ;

2 और वही हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा है ,और न सिर्फ़ हमारे ही गुनाहों का बल्कि तमाम दुनिया के गुनाहों का भी।

3 अगर हम उसके हुक्मों पर 'अमल करेंगे ,तो इससे हमें माँ'लूम होगा कि हम उसे जान गए हैं |

4 जो कोई ये कहता है, “मैं उसे जान गया हूँ “और उसके हुक्मों पर 'अमल नहीं करता ,वो झूठा है और उसमें सच्चाई नहीं |

5 हाँ ,जो कोई उसके कलाम पर 'अमल करे ,उसमें यकीनन ख़ुदा की मुहब्बत कामिल हो गई है |हमें इसी से मा'लूम होता है कि हम उसमें हैं :

6 जो कोई ये कहता है कि मैं उसमें क़ायम हूँ ,तो चाहिए कि ये भी उसी तरह चले जिस तरह वो चलता था |

7 ऐ 'अज़ीज़ो! मैं तुम्हें कोई नया हुक्म नहीं लिखता , बल्कि वही पुराना हुक्म जो शुरू से तुम्हें मिला है ;ये पुराना हुक्म वही कलाम है जो तुम ने सुना है |

8 फिर तुम्हें एक नया हुक्म लिखता हूँ ,ये बात उस पर और तुम पर सच्ची आती है ;क्योंकि तारीकी मिटती जाती है और हक़ीक़ी नूर चमकना शुरू हो गया है |

9 जो कोई ये कहता है कि मैं नूर में हूँ और अपने भाई से 'दुश्मनी रखता है, वो अभी तक अंधेरे ही मैं है |

10 जो कोई अपने भाई से मुहब्बत रखता है वो नूर में रहता है और ठोकर नहीं खाता|

11 लेकिन जो अपने भाई से 'दुश्मनी रखता है वो अंधेरे में है और अंधेरे ही में चलता है ,और ये नहीं जानता कि कहाँ जाता है क्यूँकि अंधेरे ने उसकी आँखे अन्धी कर दी हैं |

12 ऐ बच्चो! मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ कि उसके नाम से तुम्हारे गुनाह मु'आफ़ हुए |

13 ऐ बुज़ुर्गो! मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ कि जो इब्तिदा से है उसे तुम जान गए हो |ऐ जवानो !मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ कि तुम उस शैतान पर ग़ालिब आ गए हो |ऐ लड़कों ! मैंने तुन्हें इसलिए लिखा है कि तुम बाप को जान गए हो

14 ऐ बुज़ुर्गों! मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है कि जो शुरू से है उसको तुम जान गए हो |ऐ जवानो !मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है कि तुम मज़बूत हो ,औए ख़ुदा का कलाम तुम में क़ायम रहता है ,और तुम उस शैतान पर ग़ालिब आ गए हो |

15 न दुनिया से मुहब्बत रख्खो ,न उन चीज़ों से जो दुनियाँ में हैं| जो कोई दुनिया से मुहब्बत रखता है ,उसमे बाप की मुहब्बत नहीं |

16 क्यूँकि जो कुछ दुनिया में है ,या'नी जिस्म की ख़्वाहिश और आँखों की ख़्वाहिश और ज़िन्दगी की शेखी ,वो बाप की तरफ़ से नहीं बल्कि दुनिया की तरफ़ से है |

17 दुनियाँ और उसकी ख़्वाहिश दोनों मिटती जाती है ,लेकिन जो ख़ुदा की मर्ज़ी पर चलता है वो हमेशा तक क़ायम रहेगा |

18 ऐ लड़कों ! ये आख़िरी वक़्त है ;जैसा तुम ने सुना है कि मुख़ालिफ़-ए-मसीह आनेवाला है ,उसके मुवाफ़िक़ अब भी बहुत से मुख़ालिफ़-ए-मसीह पैदा हो गए है| इससे हम जानते हैं ये आखिरी वक़्त है

19 वो निकले तो हम ही में से ,मगर हम में से थे नहीं |इसलिए कि अगर हम में से होते तो हमारे साथ रहते ,लेकिन निकल इस लिए गए कि ये ज़ाहिर हो कि वो सब हम में से नही हैं |

20 और तुम को तो उस क़ुद्दूस की तरफ़ से मसह किया गया है ,और तुम सब कुछ जानते हो |

21 मैंने तुम्हें इसलिए नहीं लिखा कि तुम सच्चाई को नहीं जानते ,बल्कि इसलिए कि तुम उसे जानते हो ,और इसलिए कि कोई झूट सच्चाई की तरफ़ से नहीं है |

22 कौन झूठा है? सिवा उसके जो ईसा'के मसीह होने का इन्कार करता है। मुख़ालिफ़-ए-मसीह वही है जो बाप और बेटे का इन्कार करता है |

23 जो कोई बेटे का इन्कार करता है उसके पास बाप भी नहीं :जो बेटे का इक़रार करता है उसके पास बाप भी है |

24 |जो तुम ने शुरू'से सुना है अगर वो तुम में क़ायम रहे ,तो तुम भी बेटे और बाप में क़ायम रहोगे|

25 और जिसका उसने हम से वा'दा किया, वो हमेशा की ज़िन्दगी है |

26 मैंने ये बातें तुम्हें उनके बारे में लिखी हैं ,जो तुम्हें धोखा देते हैं ;

27 और तुम्हारा वो मसह जो उसकी तरफ़ से किया गया ,तुम में क़ायम रहता है; और तुम इसके मोहताज नहीं कि कोई तुम्हें सिखाए ,बल्कि जिस तरह वो मसह जो उसकी तरफ़ से किया गया ,तुम्हें सब बातें सिखाता है और सच्चा है और झूठा नहीं ;और जिस तरह उसने तुम्हें सिखाया उसी तरह तुम उसमे क़ायम रहते हो |

28 ग़रज़ ऐ बच्चो !उसमें क़ायम रहो ,ताकि जब वो ज़ाहिर हो तो हमें दिलेरी हो और हम उसके आने पर उसके सामने शर्मिन्दा न हों |

29 अगर तुम जानते हो कि वो रास्तबाज़ है ,तो ये भी जानते हो कि जो कोई रास्तबाज़ी के काम करता है वो उससे पैदा हुआ है |